संस्कार केंद्र योजना

संस्कार केंद्र योजना
भारत में ही नहीं अपितु विश्व में यह सबसे बड़ा गैर सरकारी शैक्षणिक संगठन है. इसका कार्य समाज की सहायता के बल पर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है. विद्या भारती का कार्य प्रारम्भ से आज कई गुना बढ़ गया है. किन्तु ये सब आंकड़े समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं एवं देश की विशालता की तुलना में बहुत कम हैं. विद्या भारती के मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की भी एक सीमा है. वनवासी पिछड़े एवं उपेक्षित क्षेत्रों में विद्यालय निशुल्क चलाने के साथ-साथ छात्रों के भोजनवस्त्रपुस्तकों आदि की भी संस्था की ओर से व्यवस्था करनी होती है क्योंकि उन क्षेत्रों में निर्धनता एवं अभावग्रस्त समाज को दो समय पेट भरकर भोजन भी नहीं मिलता. फिर वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यय कहाँ से कर सकते हैं.
देश और समाज की इस अवस्था में और विद्या भारती अपने सीमित साधनों के कारण अधिक विद्यालय स्थापित करने में असमर्थ है. अतः विद्या भारती ने संस्कार केंद्र जिनको सरकारी प्रचलित भाषा में एकल शिक्षक विद्यालय कहा जाता हैअधिक से अधिक संख्या में खोलने की देशव्यापी योजना बनायी है. इन केन्द्रों पर साक्षरतास्वाध्यायस्वावलंबनसंस्कृतिस्वदेश प्रेम एवं सामाजिक समरसता के अनौपचारिक कार्यक्रम चलते हैं. ऐसे बालक-बालिकाएं जो पारिवारिक विवशतावश अथवा विद्यालयों की समीप में व्यवस्था न होने के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. उन्हें विशेष रूप से इन केन्द्रों पर एकत्रित कर साक्षर करने का प्रयास किया जाता है. जो बालक-बालिकाएं विद्यालय तो जाते हैं किन्तु पारिवारिक परिवेश के कारण शिक्षा में पिछड़ जाते हैं. उन्हें विशेष शिक्षण की व्यवस्था कर उनको अपनी कक्षा के स्तर के योग्य बनाया जाता है. गीतकहानीखेलअभिनय आदि के क्रियाकलापों के माध्यम से इन्हें संस्कारित एवं विकसित किया जाता है. विद्या भारती के संस्कार केंद्र चार प्रकार के क्षेत्रों में चलाये जाते हैं.
१. नगरों की उपेक्षित बस्तियों अर्थात झुग्गी-झोंपड़ियों में.
२. नगरों में कान्वेंट या अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बालक-बालिकाओं के लिए. ये बालक-बालिकाएं भी भारतीय संस्कृति एवं स्वधर्म के संस्कारों से हीन अर्द्ध-विकसित रहते हैं. अभिजात्य वर्ग के ये बालक-बालिकाएं प्रायः समाज के लिए अभिशाप के रूप में सिद्ध हो रहे हैं. अतः विद्या भारती ने इनके लिए संस्कार केन्द्रों की व्यवस्था की है.
३. ग्रामीण क्षेत्रों में.
४. वनवासी क्षेत्रों में.
इन संस्कार केन्द्रों पर बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था रहती ही है. साथ ही इनके माता-पिता एवं परिवारजनों में भी अनौपचारिक एवं संपर्क कार्यकर्मों के माध्यम से स्वस्थसुसंस्कृत,व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की चेतना जागृत की जाती है. संस्कार केन्द्रों की यह अभिनव योजना पू. डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी 1988-89 के अवसर पर विशेष अभियान लेकर आरम्भ की गयी. विद्या भारती ने अपने विद्यालयों से आग्रह किया है कि प्रत्येक विद्यालय कम से कम एक संस्कार केंद्र अवश्य चलाए. आशा है संस्कार केंद्र योजना समाज और सेवावृत्ति कार्यकर्ताओं के सहयोग से अवश्य सफल होगी

मध्य भारत प्रान्त में वर्तमान में 196 संस्कार केंद्र संचालित है.

श्री पुरुषोतम जोशी प्रान्त में पूर्णकालिक के रूप में संस्कार केंद्र का कार्य देख रहे है.

संस्कार केंद्र योजना

संस्कार केंद्र योजना

 
संस्कार केंद्र योजना

भारत में ही नहीं अपितु विश्व में यह सबसे बड़ा गैर सरकारी शैक्षणिक संगठन है. इसका कार्य समाज की सहायता के बल पर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है. विद्या भारती का कार्य प्रारम्भ से आज कई गुना बढ़ गया है. किन्तु ये सब आंकड़े समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं एवं देश की विशालता की तुलना में बहुत कम हैं. विद्या भारती के मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की भी एक सीमा है. वनवासी पिछड़े एवं उपेक्षित क्षेत्रों में विद्यालय निशुल्क चलाने के साथ-साथ छात्रों के भोजन, वस्त्र, पुस्तकों आदि की भी संस्था की ओर से व्यवस्था करनी होती है क्योंकि उन क्षेत्रों में निर्धनता एवं अभावग्रस्त समाज को दो समय पेट भरकर भोजन भी नहीं मिलता. फिर वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यय कहाँ से कर सकते हैं.

देश और समाज की इस अवस्था में और विद्या भारती अपने सीमित साधनों के कारण अधिक विद्यालय स्थापित करने में असमर्थ है. अतः विद्या भारती ने संस्कार केंद्र जिनको सरकारी प्रचलित भाषा में एकल शिक्षक विद्यालय कहा जाता है, अधिक से अधिक संख्या में खोलने की देशव्यापी योजना बनायी है. इन केन्द्रों पर साक्षरता, स्वाध्याय, स्वावलंबन, संस्कृति, स्वदेश प्रेम एवं सामाजिक समरसता के अनौपचारिक कार्यक्रम चलते हैं. ऐसे बालक-बालिकाएं जो पारिवारिक विवशतावश अथवा विद्यालयों की समीप में व्यवस्था न होने के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. उन्हें विशेष रूप से इन केन्द्रों पर एकत्रित कर साक्षर करने का प्रयास किया जाता है. जो बालक-बालिकाएं विद्यालय तो जाते हैं किन्तु पारिवारिक परिवेश के कारण शिक्षा में पिछड़ जाते हैं. उन्हें विशेष शिक्षण की व्यवस्था कर उनको अपनी कक्षा के स्तर के योग्य बनाया जाता है. गीत, कहानी, खेल, अभिनय आदि के क्रियाकलापों के माध्यम से इन्हें संस्कारित एवं विकसित किया जाता है.

 
विद्या भारती के संस्कार केंद्र चार प्रकार के क्षेत्रों में चलाये जाते हैं.
१. नगरों की उपेक्षित बस्तियों अर्थात झुग्गी-झोंपड़ियों में.
२. नगरों में कान्वेंट या अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बालक-बालिकाओं के लिए. ये बालक-बालिकाएं भी भारतीय संस्कृति एवं स्वधर्म के संस्कारों से हीन अर्द्ध-विकसित रहते हैं. अभिजात्य वर्ग के ये बालक-बालिकाएं प्रायः समाज के लिए अभिशाप के रूप में सिद्ध हो रहे हैं. अतः विद्या भारती ने इनके लिए संस्कार केन्द्रों की व्यवस्था की है.
३. ग्रामीण क्षेत्रों में.
४. वनवासी क्षेत्रों में.


इन संस्कार केन्द्रों पर बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था रहती ही है. साथ ही इनके माता-पिता एवं परिवारजनों में भी अनौपचारिक एवं संपर्क कार्यकर्मों के माध्यम से स्वस्थ, सुसंस्कृत,व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की चेतना जागृत की जाती है. संस्कार केन्द्रों की यह अभिनव योजना पू. डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी 1988-89 के अवसर पर विशेष अभियान लेकर आरम्भ की गयी. विद्या भारती ने अपने विद्यालयों से आग्रह किया है कि प्रत्येक विद्यालय कम से कम एक संस्कार केंद्र अवश्य चलाए. आशा है संस्कार केंद्र योजना समाज और सेवावृत्ति कार्यकर्ताओं के सहयोग से अवश्य सफल होगी


मध्य भारत प्रान्त में वर्तमान में 196 संस्कार केंद्र संचालित है.
श्री पुरुषोतम जोशी प्रान्त में पूर्णकालिक के रूप में संस्कार केंद्र का कार्य देख रहे है.